सहमति वाले रिश्ते को दुष्कर्म नहीं माना, 10 साल की सजा रद्द

नई दिल्ली- देश की सर्वोच्च अदालत ने दुष्कर्म से जुड़े एक मामले में अहम फैसला देते हुए आरोपी को बड़ी राहत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ दोषसिद्धि को रद्द किया, बल्कि 10 साल की सजा को भी समाप्त कर दिया। अदालत ने माना कि यह मामला आपसी सहमति से बने संबंधों का था, जिसे परिस्थितियों और गलतफहमी के चलते आपराधिक विवाद का रूप दे दिया गया।

यह मामला मध्य प्रदेश से जुड़ा है, जहां ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दुष्कर्म का दोषी ठहराते हुए सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी। बाद में हाईकोर्ट ने भी सजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। इसके बाद आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। शीर्ष अदालत में सुनवाई के दौरान पूरे प्रकरण की गहराई से समीक्षा की गई।

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने मामले के सामाजिक और मानवीय पहलुओं पर भी विचार किया। अदालत ने दोनों पक्षों से उनके परिजनों की मौजूदगी में संवाद किया। बातचीत के बाद यह स्पष्ट हुआ कि दोनों के बीच लंबे समय से संबंध थे और अब वे अपने रिश्ते को वैवाहिक रूप दे चुके हैं। जुलाई 2025 में दोनों का विवाह भी हो गया।

अदालत ने पाया कि दोनों की जान-पहचान वर्ष 2015 में सोशल मीडिया के माध्यम से हुई थी और समय के साथ संबंध गहरे होते चले गए। शिकायतकर्ता ने शादी में देरी को लेकर असुरक्षा महसूस की, जिसके बाद मामला दर्ज कराया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस पूरे घटनाक्रम में आपराधिक मंशा के स्पष्ट संकेत नहीं मिलते।

पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते हुए एफआईआर, निचली अदालत का फैसला और सजा सभी को निरस्त कर दिया। अदालत ने कहा कि अब जब दोनों साथ रह रहे हैं और वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रहे हैं, तो मुकदमे को आगे बढ़ाने का कोई औचित्य नहीं रह जाता।

इसके साथ ही अदालत ने आरोपी की नौकरी से जुड़ा मसला भी सुलझाया। आपराधिक मामले के चलते उसे निलंबित कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित विभाग को निलंबन समाप्त करने और बकाया वेतन जारी करने के निर्देश दिए। वहीं, हाईकोर्ट में लंबित अपील को भी निरर्थक घोषित कर दिया गया।